कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।
मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। देश भर मे अनेकों सिद्ध स्थान है जहाँ माता सुक्ष्म स्वरूप मे निवास करती हैं
माना जाता है कि, 16वीं सदी में कामरुप प्रदेश के राज्यों में हुए युद्ध में राजा विश्वसिंह जीत गए, लेकिन इस दौरान सम्राट विश्वसिंह जी के भाई गायब हो गए थे, जिनकी खोज में वे घूमते-घूमते नीलांचल शिखर पर पहंच गए।
इस पर्वत पर राजा विश्वसिंह को एक बुजुर्ग महिला मिली, जिसने राजा को इस जगह का महत्व एवं कामख्या पीठ होने के बारे में बताया।
जिसके बाद राजा ने इस जगह की खुदाई करवाना शुरु कर दी, जिसके बाद मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला और फिर सम्राट विश्वसिंह ने इसी स्थान पर एक नए मंदिर का निर्माण करवाया।
वहीं माता के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कामख्या देवी मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर को 1564 ईसवी में कुछ हमलावरों ने नष्ट कर दिया था, जिसके बाद राजा विश्वसिंह के बेटे नरनारायण फिर से इस मंदिर का पुर्ननिमाण करवाया था।
असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।
पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
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